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गोरखालैंड स्टेटहुड डिमांड कमेटी की बैठक में पृथक राज्य गोरखालैंड की मांग को लेकर उठी आवाज

गोरखालैंड स्टेटहुड डिमांड कमेटी की बैठक में पृथक राज्य गोरखालैंड की मांग को लेकर उठी आवाज





विभिन्न सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों में इन दिनों उत्तर बंगाल सहित पड़ोसी राज्य के कुछ जिले को लेकर केंद्र शासित राज्य बनाए जाने को लेकर चर्चा चल रही है। वहीं इसी बीच आज गोरखालैंड स्टेटहुड डिमांड वर्किंग कमिटी के तत्वधान में बानरहाट धर्मशाला में पृथक राज्य गोरखालैंड की मांग को लेकर सभा की गई। इस सभा में गोरखालैंड स्टेट्हुड डिमांड कमिटी के सदस्य विशाल छेत्री, अरुण  घतानी, प्रभाकर देवान, अनंत प्रधान मुख्य रूप से उपस्थित थे। विशाल छेत्री ने बताया आज की सभा में डुआर्स इलाके के पृथक राज्य गोरखालैंड के पक्षधर संगठन के सदस्यों के साथ बैठक की गई। जिसमें अलग-अलग गोरखालैंड की दाबी को लेकर चर्चा की गई। उन्होंने बताया गत 16 अक्टूबर को दिल्ली में 17 राज्य के गोरखा समुदाय के लोगों को लेकर सभा हुई थी। जिसमें अलग राज्य गोरखालैंड की दाबी को फिर से  गणतांत्रिक रूप से एकजुट होकर उठाने का निर्णय लिया गया। देशभर के सभी गोरखा एकजुट करके अलग राज्य गोरखालैंड को राष्ट्रीय मुद्दा के रूप में उठाने की पहल को लेकर ही इस समिति का गठन किया गया है। उन्होंने बताया भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा ही गोरखा के साथ विश्वासघात किया है। राष्ट्रीय स्तर पर गोरखा की हित को लेकर सभी कार्य यूपीए के शासनकाल में ही हुआ है। चाहे वह नेपाली भाषा की स्वीकृति हो या दार्जिलिंग हिल काउंसिल हो या तो गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन हो। आज तक भाजपा सरकार ने गोरखा के लिए एक भी कार्य नहीं किया है। जबकि बंगाल में कमल खिलाने में गोरखा का ही योगदान रहा है। अभी तक जनजाति का मुद्दा भी अधर में पड़ा हुआ है। उन्होंने बताया गोरखा जाति के जितने भी सांसद एवं विधायक हैं उन्हें केंद्र सरकार के ऊपर दबाव देकर गोरखालैंड के मुद्दों को आगे बढ़ाना चाहिए। यदि यह संभव नहीं है तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने बताया उत्तर बंगाल के जिलों को लेकर जिस तरह से केंद्र शासित राज्य बनाने की बातें सुनी जा रही हैं यह गोरखालैंड की दाबी को हटाने का मुद्दा हो सकता है। जिस अंचल को लेकर केंद्र शासित राज्य बनाने की प्रक्रिया सुनी जा रही है उसमे करीब डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा जनसंख्या है। उसमें गोरखा समुदाय की जनसंख्या सिर्फ 14 से 15 लाख की होगी। अलग केंद्र शासित राज्य से गोरखाओंं का समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। केंद्र सरकार को अपनी वचन को पूरा करना चाहिए। उन्होंने बताया गोरखालैंड का मुद्दा को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए ही हम लोग प्रयासरत हैं। 




वही अरुण घतानी ने बताया पूरे डुआर्स एवं भारत के विभिन्न इलाके में जनसंपर्क अभियान के तहत गोरखा समुदाय को जोड़ने का कार्य किया जा रहा है। एक सौ साल से भी पुराने गोरखाओं की राष्ट्रीय पहचान को लेकर यह आंदोलन है। उन्होंने बताया गोरखालैंड का मुद्दा सिर्फ डुआर्स और पहाड़ का मुद्दा नहीं है यह पूरे भारत में रहने वाले गोरखाओं की राजनीतिक समस्याओं का मुद्दा है। हर समय डुआर्स के साथ विश्वासघात होने की बातें सुनी जाती है लेकिन पहाड़ को भी अभी तक न्याय नहीं मिला है। यह सिर्फ डुआर्स एवं पहाड़ की समस्या नहीं होकर भारतवर्ष में रहने वाले सभी गोरखाओं की समस्या है। उन्होंने बताया  भारत के गोरखाओं को पुनर्जागरण करते हुए एक सूत्र में समेटने का कार्य किया जा रहा है। आज की सभा मे डुआर्स के कई इलाके से प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

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